"दिल की बात"
कभी सोचा है…हम कौन हैं
क्या हैं, किधर हैं, क्यूँ हैं
हर वक़्त भाग रहे हैं हम
किसी और के जैसा बनने के लिए
अपने जैसा बनने में
अपने दिल की सुनने में
पता नहीं कौन सा डर है हमें
जिसके साथ ख़ुश हैं
उसके साथ होते नहीं
जो पाना चाहते हैं
वो मिलता नहीं
हर वक़्त ख़ुद से जाने
कितने समझौते
करते हुए जिये जा रहे हैं
अपने ही भीतर की
आवाज़ को
अनसुनी कर
बाहर के शोर में
ख़ुद को
खोते चले जा रहे हम
सबके लिए और
सबके हिसाब से जीते जी
सबके जैसे बनने की
होड़ में ख़ुद को ही
मारते जा रहे हम
कौन है हम वास्तव में
क्या चाहते हैं हम ?
क्या ये सवाल ख़ुद से
कभी करते हैं हम ?
शायद नहीं…
क्यूँकि ख़ुद के भीतर
झांक कर देखना ही
नहीं चाहते हम
अपनी ही सच्चाई से डरते हैं हम
दुनिया के इस बने बनाए ढाँचे में
ख़ुद को कैसे भी करके फ़िट करते हम ll
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