"मौसम-ए-दिल"
"मौसम-ए-दिल"
यूँ अबस ही हताशियों में न डूब ऐ दिल,
तो क्या हुआ अगर ये चश्म तर-बतर है।
थाम ले पलकों पे कुछ उजली सी उम्मीदें,
मौसम-ए-दिल भी इन दिनों सारा तरो-तर है।
रख सलीक़ा-ए-ज़िन्दगी ज़रा हँस के भी,
वरना हर राह सिर्फ़ अश्कों का सफ़र है।
कीर्ति’ भी ढूँढ लेगी उजाला इन अँधेरों में,
रौशनी ढूँढना ही तो जीने का हुनर है।